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Monday, May 14, 2018

त्रियुंड ट्रेक TRIUND TREK यात्रा की योजना

 कई साल पर्यटक की तरह घुमने के बाद ऐसा लगा कि ये घूमना भी कोई घूमना हुआ । किसी भी हिल स्टेशन पर जाने के बाद घर जैसा आराम होटलो में रहना खाना, गाडियो में बैठ कर इस पॉइंट उस पॉइंट पर घूमना इस बार कुछ अलग करने का मन जोर जोर से कर रहा था। लेकिन मन की करने के लिये एक चीज का अभाव था। वो चीज थी समय ।


पेशे से मैं एक दुकानदार हूँ। अगर आप भी दुकान से ताल्लुक रखते होंगे तो आप को पता होगा की अगर दुकान से एक हफ्ते की भी छूट्टी लेनी हो तो कितना मुश्किल होता है। एक तो मेरा घर गोरखपुर उत्तर प्रदेश में है। वहां से दिल्ली चौदह घंंटे फिर दिल्ली से हिमांचल या उत्तरांचल चौदह पंंद्रह घंंटे और, दो दिन तो वहां जाने में लग जाते है। इस मामले में दिल्ली के आस पास के घुमक्कड़ खुशनसीब हैं। जिन्हें हिमांचल या उत्तरांचल जाने में कम समय लगता है। खैर जो है सो है। मुझे ये सोच कर सुकून मिला की दक्षिण भारत या पूर्वोत्तर भारत से भी तो घूमने वाले हिमांचल या उत्तरांचल जाते है। उन्हें तो वहां पहुचने में ही कई दिन लग जाते होंगे। उनसे तो अपन ज्यादा ही लकी है।

कई जगहों के बारे में सोचते सोचते और इंटरनेट पर काफी मगजमारी करने के बाद दिमाग में एक नाम अटक सा गया त्रियुंड ट्रेक। इससे पहले मैंने ट्रेकिंग के नाम पर वैष्णो देवी,चंद्रताल और अमरनाथ की यात्राएं की थी। लेकिन इन सब जगहों पे गए हुए मुझे कई साल हो चुके थे। मैंने इंटरनेट पे सर्च करके ये पता लगाया की त्रियुंड ट्रेक एक अपेक्षाकृत आसान ट्रेक है, जिसे एक दिन में आसानी से किया जा सकता है। फिर क्या था इस ट्रैक के बारे में जितनी जानकारी हासिल की जा सकती थी मैंने कर ली।अब अगली दिक्कत थी किसी साथी की, वैसे तो ये ट्रेक अकेले भी किया जा सकता है,पर ट्रेकिंग कियेे काफी दिन हो गए थे तो मुझे ऐसा लगा की कोई साथी साथ चले तो ज्यादा अच्छा होगा। इस बारे में मैंने अपने घर के पास वाले मित्रो से कहा तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया। दरअसल मेरे मित्र गाड़ी में जाना हो तो लद्दाख भी चले जायेंगे पर पैदल चलने के नाम से उन्हें बुखार हो जाता हैं।

 खैर मैंने भी सोच लिया था इस बार त्रियुंड जाना है तो जाना है। इसी बीच मुझे दुकान के काम से दिल्ली जाने की जरुरत पड़ी। इस मौके को मैं हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। मैंने हिसाब लगाया तो मुझे लगा की दुकान के काम से दिल्ली आने जाने में मेरी त्रियुंड यात्रा के दो दिन बच जा रहे है। यानी की अगर मैं केवल त्रियुंड जाता तो तब भी मुझे दिल्ली आना जाना पड़ता। और दुकान के काम से दिल्ली जाना ही था। एक पंथ दो काज वाली कहावत सच होने जा रही थी। इसी बीच मुझे अपने एक पुराने मित्र राजन चौरसिया जी का ख्याल आया जो दिल्ली में idbi bank में मैनेजर है। मैंने राजन को फ़ोन करके इस यात्रा के बारे में बताया तो वो तुरंत ही तैयार हो गया। लेकिन उसकी एक शर्त थी की यात्रा के बीच में शानिवार या रविवार पड़े ताकी उसे बैंक से छुट्टी न लेनी पड़े। मुझे तो दिल्ली जाना ही था। मैंने इसी हिसाब से ट्रेन में आरक्षण करा लिया।
आगे:- त्रियुंड ट्रेक TRIUND TREK गोरखपुर से घर्मशाला

2 comments:

  1. Monsoon ke samay Maharashtra me sahyadri ke pahado ki khoobsurti bhi Himalaya se Kam nahi hoti hai.kab se tumhe invite kar raha hu ki , with family aao , between July to September and experience the beauty of Western ghat hills and konkan.

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